वर्ष के आखिरी दिन हिसाब लगाने भर का भी वक्त नही है। ज़िन्दगी ने एकदम से 100 मीटर वाली दौड़ में स्प्रिंट करना शुरू कर दिया है और उसमें ज़रूरत से ज़्यादा हर्डल भी लगा दिए हैं नौसिखिए के लिए।
बीता वक्त कुछ रूमानी, कुछ कड़वा अनुभवों भरा रहा। एक सर्जनात्मक पुस्तक लिख पाना एक घर बनाने से भी ज़्यादा बड़ा काम है, मुझे संतुष्टि है कि मैं एक लिख पाया और लोगों ने उसे भरपूर प्यार दिया। जान पहचान का दायरा बहुत बढ़ गया। इसमें वक्त तो बहुत जाने लगा है पर अच्छा भी लगता है। खासकर नवोदय विद्यालय और नवोदयन से अतुलनीय प्यार और सम्मान मिला। इतनी बेहिसाब मोहब्बत के लिए मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
बस यूं ही करम बनाये रखिये।नया साल आपको खुशहाली और बरकत दे।यही प्रार्थना है- रणविजय
# जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
- तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते
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