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Dil Hai Chota Sa
About This Book
‘दिल है छोटा सा ‘ लेखक के प्रथम कहानी संग्रह से हर मायने और स्तर पर अलग है। इस पुस्तक की भाषा और शिल्प में बहुत फर्क आपको साफ़ दिखेगा । भाषा के स्तर पर देशज , शहरी , कॉलेज के युवा वर्गों में प्रयुक्त शब्द और शुद्ध तत्सम सभी कहानी के परिवेश और पात्रों के साथ सहज घुले दिखते हैं । कहानियों का शिल्प भी इस तरह गढ़ा और रचा गया है जिससे अंत तक रोचकता और जिज्ञासा बनी रहती है । कथ्य के स्तर पर भी ये ‘दर्द मांजता है ‘ से बिलकुल अलग है। जहाँ पहले कहानी संग्रह में कार्यालयों , गाँवों की कहानियों में बहुत शालीनता दिखती है , वहीं ‘ दिल है छोटा सा ‘ में लालसा , वासना , प्रेम , धोखा इत्यादि मुखरित है, जो जिंदगी के अँधेरे , पर्दे के पीछे सायास धकेले गये एपिसोड हैं । पहला कहानी संग्रह ‘दर्द मांजता है..’वर्ष 2018 में अमेज़न पर गैर अंग्रेज़ी भाषाओं की केटेगरी में पांच सर्वोच्च लोकप्रिय पुस्तकों में रहा। इस लिहाज से इस संग्रह से उम्मीदें बढ़ना लाजिमी ही था। किताब की बढती मांग , और सोशल मीडिया पर आते रिव्यु , समीक्षाओं से ये परिलक्षित होता है कि ये पाठकों को आकर्षित करने ,लुभाने में सफल रही है । लेखक की कुछ अपनी विशेषता है, जोया उरों से उन्हें अलग करती है । उनकी कहानियों में अवध क्षेत्र का ग्राम्य जीवन, शहरी परिवेश में सहज उपजित कुंठाएं,लिप्सायें, अनुपलब्धियों की टूटन, ईर्ष्या एवं ब्यूरोक्रेसी के अभिरक्षित दुर्ग की अन्तःकथायें सरलता से बुनी होना ।
ब्रह्मांड की विराटता सा चित्रा का प्रेम और उसमें मात्र सूरज सा शशांक का अस्तित्व।अमनदीप को पाने की चाह रखने वाले विक्रांत और शिशिर ने अपना सब कुछ खो दिया और साथ मे ही मिटा दिया अमनदीप का भी अस्तित्व।अस्तित्व के बदलते रंग की पहचान की विनीता ने और छोड़ दिया अरविंद के घेरते बादलों का साथ। रोटी की खातिर रामजीत ,श्यामा का दांव चल के खुद उलझ गया परन्तु अस्तित्व की लड़ाई में मानसी ने तेजस का तेज छीन लिया। उम्मीद,प्यार, वासना,लालच, छद्म,कपट,आडम्बर और प्रदर्शन से निर्मित है आज के मनुष्य की ज़िंदगी। इन्ही भावनाओं की शब्दाभिव्यक्ति है, ‘दिल है छोटा सा’ की नौ कहानियां ,विभिन्न कलेवर और स्वाद लिए हुये…
नितांत आरंभ में… आपको मिलेगी चित्रा। चुलबुली और चित्ताकर्षक। अपने छोटे-छोटे बालों को, माथे से झटकती हुई। ऐसे ही वो झटक लेगी शशांक का दिल। फिर कशमकश, दुनियादारी, संयोग-वियोग से होते हुए मोहब्बत सबकुछ लुटाकर भी अंत में ख़ाली हाथ रह जाती है। विनीता अपने घर की दहलीज़ पार कर जब वापस आती है तो उसी के लिए दरवाजे सदा के लिए बंद कर देती है, जिसके लिए दहलीज़ पार किया था। आगे यात्रा में, जहाँगीरगंज और बेलहिया नामक दो गांव मिलेंगे, अपने भोले- भाले, कपटी चरित्रों के साथ, संपूर्ण नग्नता में आपके सामने खड़े होंगे, जिनसे आपको संवेदना भी होगी और उन पर क्रोध भी आएगा। कुसली-बदलू, श्यामा और रामजीत अपनी निर्धनता की कोठरी में, झरोखे से आती सूरज की रोशनी देख रहे हैं, परंतु सूरज के पीछे काले बादल भी आ रहे हैं। यात्रा के अंत मे मिलेगी- अमनदीप कौर। लखनऊ के इंजीनयरिंग कॉलेज की फ़र्स्ट ईयर स्टूडेंट, सुंदरता की प्रतिमान, इतनी कि बैचमेट और प्रोफ़ेसर दोनों इश्क़ में पड़ गए। और फिर इस संघर्ष का क्या निकलेगा परिणाम?
दिल है छोटा सा से कोट्स
एक किताब लिख लेना एक मकान बना लेने के समान है । यह उसके सदृश ही दुष्कर ,कष्टसाध्य और बजट से दोगुना खर्च करने जैसा है ।
रात की नीरवता और अकेलापन मोहब्बत की आग को माकूल हवा देते हैं ।
कुछ कीलें इतनी अन्दर तक घुस जाती हैं कि शायद उन्हें वहां से निकाल देने से जिंदगी खत्म हो जाये । इंसान उस कील के दर्द के साथ जीने को ही जिंदगी मान लेता है ।
वक्त भी आस- पास रहने वाली वायु की तरह है ।उसकी उपस्थिति का अहसास ही नहीं होता होता और कितनी जल्दी गुज़र गया ,इसका पता भी नहीं चलता ।
यादों का वजन रुई पर पड़े पानी की तरह है जो पूरा सराबोर कर ,उसको भारी कर देती है ।
टॉपर बने रहना भी एक नशा है और एक मजबूरी भी, एक पायदान भी नीचे खिसके तो आखिर लोग क्या कहेंगे ?
राजनीती सब्जियों में आलू की तरह है , जिसकी चर्चा हर व्यक्ति से की जा सकती है ।
मेधा में एक ईगो भी होता है ।