पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।
” चोट का असर लगने में नहीं अनुभव करने में होता है। आत्मा पर लगी चोट, शरीर की चोट से ज्यादा गहरी और पीड़ादायी होती है।
( भोर: उसके हिस्से की )