अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार

अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार

कई दिनों से सोच रहा था कि जो किताब पढ़ो उसका रिव्यु भी लिखा करूँ। शुरुआत करता हूँ। आगे बाकियों का भी लिखूंगा।

अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार , 8 कहानियों का संग्रह है और अंत मे एक कई कहानियों की कहानी है, जो मैंने अभी नही पढ़ी। पर कहानियां पढ़ते वक्त एक परिपक्व लेखन की बानगी मिलती है। इतना परिपक्व पहले संग्रह में ही कैसे? मैंने कई सारे पढ़े हैं ,जो भी आज बिक रहे हैं। कहानियों में एक एक वाक्य बड़े तराश कर लिखे गए हैं या तो इन पर बहुत मेहनत कर सँवारा गया है या आपको नैचुरली आता है। मैं आपकी कला का फैन हूँ। शब्द समृद्धि लाजवाब है । उर्दू हिंदी आटा पानी की तरह गूंथ दिया है। हर भाव के लिए मुकम्मल शब्द है। और एक भी भाव छूट नही पाता। आपकी कहानियों में गजब कल्पनाशीलता है नए नए उपमान देखने को मिलते हैं। चरित्र की एक एक हरकत और उसके परिवेश से उसका मूड दिखाना ज़बरदस्त है।
कहानियों से लगता है कि आपको मनोविज्ञान का बहुत व्यापक ज्ञान है और लेखिका ज़बरदस्त आब्जर्वर है।सभी कहानियां चरित्र के मस्तिष्क में चलती हैं कोई वृहद स्थूल घटनाएं न होते हुए भी गहरी छाप बनाती चलती हैं।छोटी छोटी घटनाएं पाठक को ज़बरदस्त चौंकाती हैं। लेखिका हर बात संकेत में कहती है, यही सबसे बड़ी खूबी है। समझने के लिए कई बार आप दुबारा पढ़ते हैं या पीछे पलटते हैं। मैं किसी एक कहानी का नाम नही लूंगा, न ही कोई एक चरित्र का। पर ये कहूंगा कि संग्रह बहुत सुंदर , बेहद पठनीय, संग्रहणीय है।

कुछ बातों का ज़िक्र और। पढ़ते जाने में आनन्द बहुत आता है परन्तु पढ़ कर खत्म होने के बाद 2 चीजें रेखांकित होती हैं। एक सभी कहानियों की ज़मीन एक है, दूसरी सबका स्थायी भाव विषाद है।
परन्तु बेहद बधाई विजयश्री तनवीर.

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )