इच्छा मृत्यु का वरदान भीष्म पितामह को प्राप्त था। परंतु गौर से देखिए और थोड़ा extrapolate करिए तो ये सबको प्राप्त है। ये बात सच है कि अगर चित्त प्रसन्न न हो, तो देह में अन्न नही लगता। यदि किसी मकान में लोग न रहते हों , तो वो बड़ी जल्दी ही गिर जाता है। कुछ बीमार लोग ठीक उसी दिन या कुछ घण्टों में मर जाते हैं, जब वो कह देते हैं कि अब और जीने की इच्छा नही। मेरे एक जानने वाले बीमार थे, एक दिन वो अपना मलमूत्र कंट्रोल नही कर पाए, और होश में आते ही ग्लानि से भर गए। उन्होंने उसी वक्त कहा कि इससे अच्छा तो मर जाना है, और 2 घण्टे के अंदर अचानक चले गए।
मूल बात ये है कि इच्छा में शक्ति है। वो हार भी सकती है, मार भी सकती है और पार भी कर सकती है।