साहित्य और पुस्तकों का भविष्य

साहित्य और पुस्तकों का भविष्य

कुछ दिनों पहले मैंने रेडियो में एक इंटरव्यू दिया था, जिसमे एक सवाल पूछा गया था कि इंटरनेट मोबाइल के युग मे साहित्य और पुस्तकों का भविष्य बचा ही कहां है।
मैने पूर्ण आत्मविशास से कहा कि ये केवल ट्रांजीशन फेज है, ऐसा हमेशा रहेगा ये ज़रूरी नही। जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आने से एक शंका हुई थी कि प्रिंट मीडिया खत्म हो जाएगा। पर ऐसा हुआ नही। समाचार पहले 30 मिनट्स का बुलेटिन था,मनोरंजन को ज़्यादा अहमियत थी, पर आज दिन भर कई चैनल समाचार ही परोसते हैं, इसी तरह किसी के हो जाने से दूसरे का वजूद पूर्णतया खत्म हो जाएगा, यह माना नही जा सकता।
कुछ बदलाव पुस्तकों में आएगा, कुछ कमियां मोबाइल में निकल जायेगी, चाहे किसी बीमारी की आशंका से हों, या उस पर उपलब्ध वस्तुओं की अविश्वसनीयता से हो, पर ये बदलेगा ज़रूर।अभी मोबाइल डिवाइस अपने आप को इतनी तेजी से ग्राहक के लिए बदलता जा रहा है कि ग्राहक अभिभूत है। सब कुछ इसने उसके हाथ मे लाकर रख दिया है, रुपया, पैसा, रिश्ते, रास्ते, आफिस, लोकेशन, संगीत, मूवी, समाचार, क्या नही। इसी दशा में इस में एक दिन saturation होगा या अरुचि होगी। या बहुत कुछ और जो मैं देख नही पा रहा..

पर पुस्तकों के, साहित्य के दिन बहुरेंगे, ये मैं फील कर सकता हूँ। तब जाकर अच्छे पाठक भी आएंगे, फिर अच्छे लेखक भी आएंगे।

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )