एक टफ मैनेजर था, प्रोडक्टिविटी ओरिएंटेड।उसने कुछ मुर्गियां पाली। ज़िन्दगी आराम से गुज़र रही थी, सात दिन में एक अंडा देना होता था। फिर उसने इसे घटा कर 6 दिन कर दिया। ज़िन्दगी में झोल आया ,पर एडजस्ट कर गए।
मैनेजर ने कुछ दिन बाद टारगेट बढ़ा दिया। 5 दिन में एक। थोड़ी खलबली मची, धीरे धीरे फिर एडजस्ट कर गए। मैनेजर ने प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए टारगेट revise कर दिया। 4 दिन में एक। फिर वही कशमकश, विरोध करें या नही। फिर एडजस्ट कर लिया। ओवरटाइम करने लगे। कुछ मस्ती कम हो गयी। पर ज़िंदगी चलती रही।
निरंकुश मैनेजर ने घटाते-घटाते इसको एक दिन पर 2 अंडा कर दिया। मजदूर मुर्गियों ने आखिर रोज़ दो अंडा देना शुरू कर दिया।
क्लाइमेक्स-
एक दिन मैनेजर को लगा कि रोज़ एक अंडा कम आता है।उसने सब मुर्गियों को अलग अलग कर दिया और मोनिटर किया।एक के पास केवल एक अंडा निकला। उसने बहुत डांटा ,चिल्लाया, आखिर जब उससे सहन नही हुआ तो उसने कहा दिया परफॉर्मेस प्रेशर में वह इतना ही पूरी जान लगा कर के कर सका है, वरना तो वह मुर्गा है।