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#नज़र_और_नज़रिया
एक किस्सा सुनाता हूँ। फ़िल्म स्लमडॉग मिलियनेयर के ‘जय हो’ गीत के लिए गुलज़ार को ,रहमान को ऑस्कर मिला। फ़िल्म को भी किन्ही अन्य श्रेणियों में भी ऑस्कर मिला। ऑस्कर फिल्मी दुनिया का सर्वोच्च सम्मान है। अब मैं थोड़ा अलग से सोचता हूँ। क्या ‘जय हो’ गुलज़ार की बेहतरीन कृति है? क्या ये रहमान की बेहतरीन कृति है। या क्योंकि फ़िल्म गोरों ने बनाई थी इसलिए ये रिकग्निशन मिला है। एक बात और क्या गुलज़ार की ये कविता या नगमा कोई पढ़ता या सुनता ,यदि इसमें इतना अच्छा संगीत न होता तो? जवाब आप जानते हैं। तातपर्य ये है कि सोने की चमक स्वत्: नही है, रोशनी डालने से बनती है।
क्यों और किसलिए ये मैंने लिखा, ये कयास का विषय है। परन्तु लागू सब जगह है। सिर ऊपर कर सोच कर देख लीजिए।
नीचे वो नगमा भी कॉपी पेस्ट है।लुत्फ उठाइये।
जय हो
आजा आजा जींद शामियाने के तले
आजा ज़री वाले नीले आसमान के तले
जय हो
रत्ती रत्ती सच्ची मैंने जान गंवाई है
नच-नच कोयलों पे रात बिताई है
अंखियों की नींद मैंने फूंकों से उड़ा दी
गिन गिन तारे मैंने ऊँगली जलाई है
चख ले हाँ चख ले ये रात शहद है
चख ले रख ले
दिल है दिल आखरी हद है
रख ले काला काला काजल तेरा
कोई काला जादू है ना
कब से हाँ कब से जो लब पे रुकी है
कह दे कह दे हाँ कह दे
अब आँख झुकी है
ऐसी ऐसी रोशन आँखें
रोशन दोनों हीरे हैं क्या