किताबों के पाठक

किताबों के पाठक

पाठकबनाम रसिक

100 रुपये से 200 रुपये किसी व्यक्ति के लिए आजकल नगण्य रकम हो गयी है। फ़िल्म देखने मे 500 रूपये खर्च हो जाते हैं। परंतु मैने देखा है कि किसी को यह कह दो कि मेरी किताब खरीद कर पढ़ लेना, तो आदमी हाँ कह कर भी नही करता है।
मेरी समझ से कारण यह नही कि वह अफ़्फोर्ड नही कर सकता, बल्कि वह इस नैतिक बोझ से मुक्त रहना चाहता है कि किताब खरीदी है तो पढ़ना भी पड़ेगा। एक किताब लिखने में किसी भी लेखक का 1-2 साल चला जाता है, और बड़े 20-25 लेखको को छोड़ कर किसी के लिए भी ये आजीविका का साधन नही हो सकता।
आम व्यक्ति का पढ़ने का जो समय(अटेंशन स्पैन) है वो 2-3 पैराग्राफ से ज़्यादा का नही है। लघु कथा तो पढ़ सकता है और कुछ नही।कहानी, उपन्यास पढ़ने वाला व्यक्ति तो रसिक ही हो सकता है।
एक भी लाइन ज़्यादा लिखने में खतरा ये है कि इस पोस्ट को भी केवल रसिक ही पढ़ेंगे।☺️☺️

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )