Pant nagar days 1994-98

Pant nagar days 1994-98

#पंतनगर_1994_1998
हिमालय की तराई , नैनीताल के पांव को सहारा दिए बसा था पंत नगर। हल्द्वानी से 25 किमी और रुर्द्र पुर से 16 किमी। यही दो सबसे करीबी शहर या कस्बे थे। हरी भरी दरी की तरह बिछी कायनात में कवि ह्रदय रम सकता था। प्रेमी खो सकता था। पर उस उम्र में हमारे दिमाग उन्मुक्तता तलाश रहे थे। ये सब तो बंधने वाले प्रसंग थे।
मा बाप की घेरा बंदी से तुरत निकला नव युवक एस्केप वेलोसिटी से भागना चाहता था कि कहीं कोई फिर पकड़ न ले।
इंजीनियरिंग कॉलेज ,फर्स्ट ईयर , टैगोर होस्टल, रैगिंग, फैंटम, ninety, 180, थर्ड बटन, मंगल रात दीवाली…….किस्सों की कमी नही।
और प्रिय सम्बोधन.. …..के।
8:30 पर उठ कर 9:00 की क्लास करने की प्रवीणता हो गयी थी। सिल्वर जुबली होस्टल से हम चाय का कप एक हाथ मे लेकर और कॉपी दूसरी हाथ मे लेकर निकलते थे। चाय कहीं फाउंड्री शॉप के पास खत्म हो जाती थी और कप उसके दूसरी तरफ की झाड़ियों को। रोज़ कितने कप वहां फेंके जाते थे। पर मेस में कप कम नही पड़ते थे। उस समय यही टशन था।
अब सोचता हूँ कि मैनेजर 10 बजे जाकर कप बीन तो नही लाता था?
तब सोचने की फुर्सत नही थी। ज़िंदगी जियी जा रही थी, काटी नही।

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )