#Metoo*campaign
वैसे तो मैं इस मुद्दे पर कुछ कहना नही चाह रहा था। काफी लोगों ने इसको अभिजात्य कह कर मखौल भी उड़ाया, कुछ अभी भी ,तब नही तो अब क्यों? कह कर हंसी कर रहे हैं। पर ये ऐसा क्यों कर रहे हैं?
वायरल हो जाना ज़रूर भेड़ चाल लगता है। क्या ये मीडिया या सुर्खियों की लोलुपता ही है?ये बात इतनी आसान नही, जितने सतहीपन से हम उसे समझना चाहते हैं। ऐसी बहुत सी बेइज़्ज़तियाँ आदमी खुद से चिल्ला कर नही कहता क्योंकि अक्सर लोग उसमे करुणा न देख कर मसाला देखते हैं या उसी पर दोषारोपण कर देते हैं। थोड़ा और संवेदनशीलता चाहिए ये समझने के लिए। और ऐसे नासूर पुरुषों के भी होते हैं, जहां कुछ गलत कर देने या अपने साथ हो जाने को वो भी लेकर मसोसते रहते हैं, पर जब सही करुणा और संवेदना मिलती है तो बस खुल जाते हैं बांध की तरह। और निश्चय ही ये सुकूनदायी है कि हमने शेयर किया, लोगों ने appreciate किया और हमारे जैसे और भी हैं।
ये कंपेन guilt ढोने वालों का भी हो सकता है, आखिर वो भी एक बोझ लेकर चल रहे हैं।