हिंदी में कहानी उपन्यास के विषयों पर विमर्श

हिंदी में कहानी उपन्यास के विषयों पर विमर्श

स्त्री -पुरुष सम्बन्ध सदियों से कहानियों का प्रिय, प्रमुख विषय रहा है। प्रेम प्रधान, काम प्रधान, विषाद प्रधान या वियोग प्रधान, छल प्रधान या इनके फैले कैनवास में कहीं के भी रंग या इनकी मिलती काटती बाउंड्रीज के रंग अक्सर ही आपको मिलेंगे। जो भावनाओं, अनुभवों को पकड़ने वाला जितना अच्छा चितेरा , उतना ही आनन्द वो पाठक को देता है।
एक कविता प्रेम पर लिखना आसान है पर किसान पर लिखना कठिन। पर इससे हमारा धरातल छोटा हो जाता है।हमारे अनुभव सीमित हैं और रिसर्च को हम तवज़्ज़ो नही देते। इसलिए कोरी भावनात्मकता के सहारे या वासना के सहारे हम अपनी नैया पार करना चाहते हैं।
कहानी उपन्यास खत्म होने के बाद एक खुशनुमा अहसास तो दे देते हैं, पर वो कोई उद्वेलना नही करते , या आपको कोई खास जानकारी भी नही देते।मात्र मनोरंजन ही साध्य नही।इस दिशा में #भगवंत अनमोल की ज़िन्दगी 50 -50 एक नया धरातल लेकर आई थी। और #सत्य व्यास की 84 में रोचकता के साथ काफी जानकारियां भी मिलीं जो लेखक ने रिसर्च से जुटाया होगा।

लेखकीय मौलिकता में कमी नही है परन्तु शोध से उसमे ऐसी जानकारियों का मिश्रण बढ़ाया जा सकता है जो पाठक के लिए take away सिद्ध होंगे। यहां मकसद take away देना नही , बल्कि पाठक को मानसिक स्तर पर भोजन देना भी है। लेखक केवल दिल बहला के इतिश्री नही कर सकता।

कृतियों में टेक्निकल,दार्शनिक, लीगल,मेडिकल, मेडिकोलीगल,राजनैतिक तम्माम अन्य प्रधानता से बढ़ें तो वैरायटी आएगी और शायद हिंदी का उद्धार भी होगा।

मैं ऐसी चिंता कर रहा हूँ पर सम्पूर्ण रूप में मैंने भी अभी ऐसा कुछ किया नही है। मेरा पहला कहानी संग्रह दर्द माँजता है काफी विषयों पर डील करता है और अगला आने वाला संग्रह भी ऐसा होगा। पर मुझ से एक टेक्निकल मनोरंजक उपन्यास की अपेक्षा की जा सकती है।

कोशिश रहेगी।

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )