यही फैशन है..

यही फैशन है..

गांवों की यही रवायत है। या तो ताश होगा या पंचायत। आजकल नया फैशन चौराहेबाज़ी का भी है।

युवाओं को क्या चाहिए, एक कैनवास जूता जो रीबॉक या एडिडास का हो, एक रंगीन हुड वाली t शर्ट, एक जीन्स , एक मोटर साईकल और सवसे ज़रूरी एक और आवारा दोस्त।पुकार, राज दरबार, दिलबाग कॉन्फिडेंस दिलाते हैं और सिगरेट टशन। बस अब दुनिया कदमों तले है। मिज़ाज़ इतना गर्म कि सड़क पर कोई साईकल से चले तो गाली “हटो…… के, सड़क बाप की है क्या?” लड़ने को हर पल तैयार । करने को कुछ औऱ है भी नही। पढ़ाई उनके माफिक नही, खेती ,पेशा बाद में मजबूरी होगी, नौकरी मिलने वाली नही।
* निम्न चित्र मेरे कहानी संग्रह की आखिरी कहानी से है’प्रतिशोध’

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )