An experience from Jhansi days

An experience from Jhansi days

झांसी के कार्यकाल में मेरे विभाग का एक अन्य विभाग से बड़ा क्लोज asoociation रहता था। दोनों के बिना काम होना सम्भव न था। पर ये दूसरा विभाग थोड़ा सुस्त रहता था और अक्सर मेरी अनुपस्थिति में काम न होने की शिकायत मेरे विभाग पर ठेल देता था।
उस विभाग का सबसे वरिष्ठ मातहत बड़ा मौजी व्यक्ति था। केवल प्रवृत्ति से ही नही बल्कि शरीर, चाल ,हाव भाव सब मे एक मस्ती थी जिसमे फिक्र का कहीं दूर दूर तक पता दर्ज नही था।
जब भी मैं उससे पूछता कि फला काम क्यों नही हो रहा, उसका एक ही जवाब आता।
“साहब, हम तो अधीनस्थ हैं।
जैसा हुकुम सरकारी,
वैसी कटेगी तरकारी।

आप तो हुकुम कीजिये”

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

वर्दी वाले बहुत कुछ मैनेज कर सकते हैं, ख़ास कर जो चीज अवैध हो।

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )