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बदलते हुए चरित्रों की दास्तान - दैनिक जागरण, दिनांक

27 मई , 2018

हाल ही में आए कहानी संग्रह संग्रह ‘दर्द माँजता है’ का शीर्षक लेखक के निजी अनुभवों को प्रतिबिंबित करता है। कहानीकार “रणविजय” रेलवे से जुड़े हैं । उन्होंने रेलवे की जिंदगी को बेहद करीब से देखा है ,यही वजह है कि उनकी कई कहानियों में रेलवे की दुश्वारियों, चुनौतियों का अक्स है। दो कहानियां ‘राजकाज ‘और ‘कागजी इंसाफ’ रेलवे में नौकरशाही, कमीशनखोरी, ठेकेदारी के गठजोड़ की परत- दर- परत उधेड़ती हैं । कहानी ‘वंचित’ इस शाश्वत सत्य को मजबूती से पेश करती है कि समर्पण और ईमानदारी ही दांपत्य जीवन का मूल आधार है।

एक अनाम लघु उपन्यास

तीन स्त्रियां देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आती हैं। विभिन्न दिशाओं से आने वाली रेलगाड़ियों की तरह एक जंक्शन पर मिलती हैं ।इलाहाबाद संगम की नगरीे तीन नदियों की तरह ही तीन स्त्रियों को मिलाती है। 30 से 40 वर्ष के बीच के आयु की मन्दालसा, पल्लवी और चांदनी वेल सेटल्ड हैं। फूल अलग-अलग होते हुए भी सब में सुगंध एक ही है ।जीवन की विषमताओं ,कुरूपताओं और कहीं पुरुषों से प्रताड़ित, वह अपनी बेड़ियां काटने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे प्रयास में ही एक दिन वे अपने आप को escape velocity से प्रक्षेपित करती हैं और फिर काफी दूर निकलने के बाद याद आता है जमीन तो पीछे छूट गई। इस यात्रा में आप शीघ्र ही शामिल होंगे ……

लिखना भी एक catharsis है। विभिन्न लोग इसे विभिन्न तरह से हासिल करते हैं। मुझे लिखकर ही प्राप्त हुआ। ज़मीन को फोड़कर, सर उठाकर बीज की तरह निकला हूँ और जाड़ा, गर्मी, बरसात, आंधी सहकर वृक्ष बना हूँ। गांव से शहर तक, नगर से महानगर तक, पैदल से साइकिल तक, फिर मोटरसाइकिल से कार तक, खेत से फार्महाउस तक, और आम से हुक्काम तक का सफर मैंने तय किया है। इस सफर में किरदार मिलते गये और कहानियाँ बनती गयीं। किरदार इतने सशक्त निकले कि वे मुझे बेचैन करते रहे और चैन तब मिला जब वे नेपथ्य से मंच पर आ गए।अब स्वयं हीबोलेंगे, सबके सामने। मैं मात्र सूत्रधार…. बोझ से केवल मुक्त हुआ हूँ। –

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FEATURED NEWS

My Interview-2

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Perceptions

Pant Nagar Days 1994-98

Perception Changes

An Experience From Jhansi Days

Repair Of House Hold Things

Performance Pressure

पढ़ाई से इंजीनियर , व्यवसाय से ब्यूरोक्रेट तथा फितरत से साहित्यकार हैं ‘ रणविजय’।

किसी को भी नाराज ना कर
    पाने की आदत एक दिन
   आप को स्वयं से नाराज कर देती है |

-रणविजय

( भोर: उसके हिस्से की )